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एक दर्द छिपा होता है ||
गौर कीजिए "हंसते चेहरे के पीछे" ,
चेहरा तो हंसता होता है ||
जो लिखता है हास्य रस वो ,
वो करुना रस भी लिखता है ||
गौर कीजिए "हंसते चेहरे के पीछे",
चेहरा तो हंसता होता है ||
हर कोई बंदा अपने दिल के ,
एक कोने में रोता है
||
गौर कीजिए "हंसते चेहरे के पीछे",
चेहरा तो हंसता होता है ||
अपने दुःख को यूँ छिपा कर ,
न चैन की नींद वो सोता है ||
गौर कीजिए "हंसते चेहरे के पीछे" ,
चेहरा तो हंसता होता है ||
अपनों की खातिर .......
अपने यारों की खातिर |
हंसी खुशी वो रहता है ||
गौर कीजिए "हंसते चेहरे के पीछे"
चेहरा तो हंसता होता है ||
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गोपाल कृष्णा “चौहान”
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कविता पुस्तक : “कुछ पृष्ठ मेरी लेखनी से”|
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