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वायलिन

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           दक्षिण  नांदेड का पुल लाँघ कर कुछ ही किलो मीटर की दूरी पर था | पहाड़ों पर बसा वसरनी गाँव | वसरनी पहुँचने के लिए चहु ओर से सड़के बनाई गई थी | उस  दिन वसरनी जल्द पहुंचना था |आकाशवाणी रेडियो पर रेकोर्डिंग का समय दुपहर दो बजे का दिया गया था | मुझे कवि सम्मेलन हेतु बुलाया गया था | मैंने मोंढे से ऑटो पकड़ा और निर्धारित समय पर पहुँचने के लिए निकल पड़ा | ऐसे में मुझे याद आया कि वसरनी में मेरा एक कॉलेज का दोस्त रहता हैं  | हमने तहसील किनवट में कॉलेज की पढाई साथ-साथ की थी | वह अच्छा वायलिन वादक था | किनवट से अट्ठारह किलो मीटर की दूरी पर उसका गाँव बोधडी था | वहीँ से वह रोज अप-डाउन करता था | वायलिन ने ही हमे दोस्त बनाया था | मैं सप्ताह में दो-तीन दिन उसके पास वायलिन सिखने के लिए जाया करता था | जब तक मैं कुछ सिख पाता उसे वसरनी में नौकरी लग गई थी | और मेरी वायोलिन सिखने की इच्छा अधूरी रह गई | उसके बाद जब भी हमारी मुलाखात होती | मैं वायलिन को जरुर याद करता था | मैं उसे कहता था ‘’ प्रिय वायोलिन कहाँ हैं |’’ वह घर पर ले जाता ओर मुझे वायलिन दिखाते हुए कहता ,’’ यह रही प्रिय वायोलिन |’’ मैं उसे वायलिन सुनाने के लेये कहता और वह हर्ष के साथ मुझे वायोलिन सुनाता था | मुझे वायलिन का संगीत बहुत प्रिय लगता हैं | सुनते-सुनते मैं अतीत–भविष्य की यादों-सपनों में खो जाता था | दोस्त भी पूरी तलीनता के साथ बो को वायोलिन के तारो पर घुमाता और अपने उगलियों से साज का निर्माण करता | वायलिन से उधृत होने वाले जादुई संगीत के प्रति वह भी अपने आप को समर्पित कर देता था |  जब उसकी तल्लीनता टूटती मैं भी पुनः लौट आता स्वर्गीय आनंद से ...| हम दोनों एक साथ आनंद में डूब जाते थे |

        दोस्त इतनी जल्दी नौकरी नहीं करना चाहता था | पर घर की जिम्मेदारी उस पर ही थी | वह  इस मौके को हाथ से नहीं जाने देना चाहता था | इसीलिए उसने नौकरी के मार्ग का चयन किया | वह संगीत टीचर के रूप में अंध विद्यालय में ज्वाइन हो गया था | उसके पिछे की मंशा साफ थी | उसके पिता जी नेत्रहीन थे | वे एक अच्छे गायक ,संगीतज्ञ थे | उनके पिताजी को देख कर उसके मन में हमेशा यह विचार आते कि स्कूल पर तो कोई भी पढ़ा सकता हैं | पर अंध स्कूल पर बहुत कम | वह चाहता तो और भी कोई मार्ग अपना सकता था | पर जिम्मेदारी के साथ उसमें समाज सेवा की भावना प्रबल रूप में थी | आज फिर से उससे मिलने का मौका मिला था | मैंने उसे फोन पर सम्पर्क किया | ’’ तू कहाँ हैं ? मैं वसरनी आ रहाँ हूँ | आज रेडियो पर कवि सम्मेलन के लिए रिकॉर्डिंग हैं |’’ वह बड़ा हर्षित हुआ था | ‘’ अरे तू सच कह रहा हैं | यहाँ स्कूल पर जरुर आना |’’ मैंने उसे रेडियो पर साथ चलने के लिए कहा था | पर वह जिद करने लगा था कि ‘’तू स्कूल पर आ ,यहीं से हम दोनों आकाशवाणी पर चलते हैं |’’ मैंने भी हामी भरते हुए कहा ‘’ठीक हैं ‘’|
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         पन्द्रह मिनट पहले मैं स्कूल पर पहुँच गया था | दोस्त मेरी ही प्रतीक्षा में बैठा था | मुझे देख कर वह बेहद प्रसन्न हुआ  | ‘’ अरे आ गये ,आओ चले आओ |’’ पर वह दीवार के सहारे बैठा रहा | उठ कर  मेरा स्वागत करने के बजाये बैठ कर ही मेरी आओ भगत करने लगा था | ‘’ यार कैसे हो ? बहुत दिनों बाद हमारी मुलाखत हो रही हैं | ‘’ मेरे कहने पर उसने कहा ,’’ हाँ ,यार सही कह रहा हैं तू , पिछली बार हम औरंगाबाद के बीवी का मकबरा के गार्डन में मिले थे | सो अब मिल रहे हैं | कैसी विडम्बना हैं दोस्त हम एक ही शहर में रहते हैं पर मिल नहीं पाते हैं | ‘’ जवाब स्वरूप मैंने कहा ,’’ हम अपने-अपने कार्यों  में इतने व्यस्त हो गये हैं कि दो पल भी हम एक दूसरे को नहीं दे पा रहे हैं |’’ दोस्त जहाँ बैठा था | वहीं बैसाखी रखी हुई थी | पता नहीं किसकी थी | होगी किसी की | अब दो बजने ही वाले थे | आकाशवाणी करीब ही थी | मैंने दोस्त से कहा ,’’ दोस्त चलो समय हो गया हैं , हमे रिकॉर्डिंग के लिए अब चलना होगा | ‘’ मेरे दो-तीन बार कहने के बावजूद भी वह आने के लिए तैयार नहीं हो रहा था | पर थोड़ी देर बाद उसने बैसाखी पर हाथ रखते हुए कहा ,’’ दोस्त मैं नहीं आ सकता ..|’’ मैंने दुखी स्वर में पुछा  ‘’क्यों?’’  उस पर उसने कहा ,’’ मेरा अक्सिडेंट हो गया हैं ,मेरा बाया पैर बुरी तरह से टूट गया था | छ महीने से मैं घर पर ही था | अब जाकर ही मैं स्कूल आ रहा हूँ | मैं चल नहीं पाउँगा | मुझे यहाँ लाने और ले जाने के लिए ऑटो आता हैं | दो कदम चलने में मुझे दर्द होता हैं | दोस्त मुझे माफ कर देना | मैं नहीं आ पाउँगा |’’ दोस्त की इस हालत का मुझे पता नहीं था | सुन कर बुरा लगा | इस अवस्था में वह मुस्करा रहा था | और भीतर से कराह रहा था | मैंने उसकी इस अवस्था को देख कहा .’’ दोस्त मुझे ही माफ कर देना ,मैं तुझे ऐसी हालत में चलने के लिए कह रहा था | ‘’ इस पर दोस्त ने कहा ,’’ तुझे भी कहाँ पता था दोस्त , इसीलिए मैंने फोन पर तुझे नहीं बताया | मैं इनकार करता तो तुझे बुरा लगता | अब तू आ गया हैं | तूने अपनी आखों से देखा मेरी इस अवस्था को .. | ‘’ मैंने कहा .’’ मैं तेरी ऐसी अवस्था में साथ नहीं दे सका | मुझे पता भी नहीं था | तू छ: मैहिनो तक..|’’ दोस्त ने ,’’ जाने भी दे यार ,छोड़ ना | वह समय ही ऐसा था कि मैं ही किसी को बताने की अवस्था में नहीं था | घर पर बिस्तर पर मैं पड़ा हुआ था | मेरी बेटी और पत्नी ने मेरा बहुत खयाल रखा था | मेरी बेटी रोज मेरे सामने कथक नृत्य किया करती थी | मेरा मनोरजन करती थी | मैं भी रोज वायोलिन लेकर बैठ जाता था | वायोलिन ने मेरा साथ नहीं छोड़ा | जब भी मुझे मिलने घर पर कोई आता तो मैं उन्हें वायोलिन सुनाता था | मेरे कई प्रोग्राम मिस हो गये | मैं सोच रहा था कि अब जिंदिगी में फिर कभी चल पाउँगा या नहीं | पर डॉक्टर ने राहत दी | अगले तीन महीने तक पूरी तरह चल पाउँगा | ‘’ दोस्त की दुःख भरी कहानी  सुन कर मेरा हृदय भी द्रवित हो गया था | विद्यालय के फरसी पर भिछे चादर से उठ ते हुए मैंने कहा ,’’ दोस्त मैं आकाशवाणी पर हो आता हूँ | वर्ना वहाँ मुझ पर नाराज हो जायेंगे | किसीने समय दिया हैं तो हमारा कर्तव्य हैं कि हम समय पर पहुंचे | दोस्त मैं चलता हूँ | लौटते समय फिर आऊंगा | और हाँ उठने की जरूरत नहीं |’’ मैं चलने को हुआ तो सामने दीवार से सटी सीडियों से उतर कर एक अँधा छात्र बिना दिक्कत के सामान्य ढंग से बाई और स्थित ऑफिस की सिडियो पर चडते हुए वहाँ लगे वाटर फिल्टर तक पहुँच कर ग्लास उठाया नल से पानी भरा पीया और झट से उसी क्रम में वापस लौट गया | मैं इस क्रिया को देख कर हैरान हो रहा था | जिन्हें ऑंखें होती हैं , वह भी इतनी तेजी से काम नहीं कर पाता ,जितनी स्फूर्ति से वह चौदह –पन्द्रह साल का अँधा लड़का कर गया | मेरे पास समय की कमी थी सो मैं आकाशवाणी पर चल दिया |
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       मैं जब  लौट कर आया तो दोस्त वहीँ दीवार से सट कर फरसी पर डाले गए चटाई पर बैठा वायोलिन बजा रहा था | वायलिन से निकलने वाले मधुर संगीत में दोस्त लीन हो गया था | मैं उसके सामने जाकर बैठ गया | जब उसकी तलिन्नता टूटी तब मैं उसके सामने नजर आया | इस पर उसने कहा ,’’ अरे तू कब आया ,मुझे पता ही नहीं चला |’’ ‘’ दोस्त मैं भी संगीत के जादू से ऐसा मोहित हो गया कि मैं कब तेरे सामने आया और कब आकर यहाँ बैठ गया | सच में तेरे इन उँगलियों में वह जादू हैं ,जो संगीत प्रेमी को स्वर्गीय आनंद देता हैं |’’
‘’यार बस–बस  मैं इतनी ख़ुशी बर्दाश्त नहीं कर पाउँगा | मैं तो शून्य हूँ यार ,मैं कुछ नहीं करता बस हो जाता हैं | पर हाँ मैं तन और मन से आत्मा से वायोलिन के प्रति समर्पित हो जाता हूँ | अच्छा यह छोड़ कैसे रहा रिकॉर्डिंग |’’
मैंने कहा ,’’ अच्छा रहा | जैसे ही सम्पन्न हुआ तो तुझे मिलने चला आया |’’
ऐसे में दोस्त कोई सुंदर गीत गुनगुनाने  लगा था | सीडियों से खुबसूरत पर नेत्रहीन लड़की साड़ी पहने निचे आई और पास के ऑफिस के सीडियों से होते हुए भीतर चली गई | पर ऑफिस के सीडियों से गुजरते हुए वह कुछ पल रुकी ,कानो को दोस्त के गीतों की ओर केन्द्रित किया | सुना और चली गई | मैंने दोस्त से पुछा ,’’ वह गीत सुनकर गई ,वह जा रही थी पर उसके कान गीतों की ओर थे | यह कोन हैं ?’’ उसने कहा ,’’ वह यहाँ हिंदी पढ़ाती ही ,वह टीचर हैं | ‘’
मैंने कहा ,’’ वा क्या बात हैं ,पर यार उसे दिखाई नहीं देता | वह उपर सीडियों से उतरी और ऑफिस के सीडियों से होते हुए कक्षा में चली गई  | यह सब कुछ वह कैसे कर लेती हैं ? यहाँ आंख होकर भी लोग अंधों की तरह व्यवहार करते हैं | उसके कान कितने तेज हैं | शायद नेत्रहीन ज्यादा अच्छी तरह से सुन सकते हैं | ’’
दोस्त ने कहा ,’’ सच कहा तूने , उन्हें यहाँ के सारे रास्ते याद हो गये हैं | वे बेदिक्क्त कभी भी कहीं भी आ जा सकते हैं | ‘’ऐसे में दोस्त करवट बदलने की कोशिश कर रहा था  कि अचानक पैर में दर्द उत्पन्न होने से उसके मुह से पीड़ा भरी ‘’आह ..’’ की आवाज निकली | मैंने उसे सम्हालने की कोशिश की ,बाजु में रखी पानी की बोतल का ढक्कन निकाल कर उसके मुह से लगाया | वह लगभग आधी बोतल पानी पी गया | और कुछ क्षण शांत बैठा रहा | उसने कहा ,’’ यार जब अक्सिडेंट हुआ और पैर की हड्डी टूट गई तब ऐसा लगा कि मैं अब कभी फिर से नहीं चल पाउँगा | मैं भी अपाहिज हो जाऊंगा | उस समय मुझे जन्म से अपाहिज कई लोगो की याद आई | कई लोग पैरों से चल नहीं सकते ,कईयों को हाथ ही नहीं ,तो कई नेत्रहीन अपाहिज लोग हैं | वे किस दर्द से गुजरते होंगे | वे भी सोंचते होंगे की काश मुझे पैर होते ,हाथ होते ,नेत्र होते | पर दोस्त उनकी एक बात हैं कि वे इस पीड़ा के कारन जीना नहीं छोड़ते | वे जीवन को हमसे ज्यादा सकारात्मक ढंग से सोचते हैं | ‘’ जब दोस्त मुझसे अपनी बात कर रहा था | तब भीतर से हिंदी में गीत गुनगुनाने की आवाज आई | मैंने उसे सुना और दोस्त से कहा ,’’ तू सच कह रहा हैं | ये लोग हमसे ज्यादा सकारात्मक सोचते हैं | वैसे यह मधुर आवाज उन्ही मैडम की हैं ना जो अभी-अभी यहाँ से गुजर कर गई हैं |’’
दोस्त ने हामी भरते हुए कहा ‘’हाँ ,यह वही हैं |’’ और उन मैडम का नाम लेते हुए उन्हें बताया की मैंने उनकी तारीफ की हैं | वह बाहर आई और उसने मुझे शुक्रिया कहा | दोस्त ने मेरा उन्ह्से परिचय करवाया | मैंने उनकी तारीफ करते हुए कहा ,’’ आप की आवाज और हिंदी बहुत अच्छी हैं ,और आप को पता हैं कि ईश्वर ने आप को आवाज के साथ सुन्दरता भी दी हैं |’’ वह शरमा गई और शुक्रिया करते हुए भीतर चली गई |
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          हम बहुत समय तक अतीत और वर्तमान की बातें करते रहे | बातों-बातों में हमारे तहसील किनवट के एक कॉलेज मित्र राकेश का विषय निकला था | राकेश कक्षा में सबसे अव्वल छात्र था | वह अच्छा भाषण  करता था | दोस्तों का दोस्त था और दुश्मनी भी जमकर करता था | वास्तव में वह हर काम जमकर करता था | वह बिनधास्त लड़का था | हमने किनवट के सरस्वति विद्या मंदिर महाविद्यालय से बी ए. की पढाई पूरी की थी | अगली पढाई जिला नांदेड के जानेमाने कॉलेज पीपल्स कॉलेज से पूरी की थी | वह यहाँ भी टॉपर रहा था | जल्द ही वह अपने टेलेंट के दम पर जिला औरंगाबाद के एस.बी .कॉलेज पर अध्यापक नियुक्त हुआ था | पर एक दिन डॉक्टर ने उसे कह दिया यदि इसके बाद पढ़ाई करोगे तो जो भी आँखों की रौशनी हैं ,वह भी जाती रहेगी | उसे कलेजे पर पत्थर रखना पड़ा था | मजबूर हो कर वह अपने गाँव लौट आया था | शिक्षा के क्षेत्र में एक अच्छा अध्यापक आते-आते चला गया | क्योंकि वह आँखों से अंशत: ही देख पा रहा था | ऐसा लगता था कि ईश्वर ने उसके साथ बहुत बड़ा मजाक किया हैं | पर वह हार मानने वालों में कहाँ था | उसने अपनी पुस्तैनी खेती सम्हाल ली थी | बाकी समय घर पर राशन की दुकान चलाता था | वह स्वाभिमानी था | आज भी उसके सामने सामान्य लोग अपाहिज से लगते थे | जब हम पुराने यार-दोस्तों की बातों में खोये थे | तब एक पाँच साल का मासूम लड़का हमारे सामने आया और अपनी चड्डी जल्दी-जल्दी  उतारने लगा | जैसे ही हमारी नजर उसपर पड़ी तब दोस्त ने उसे कहा ,’’ अरे रोहन बेटा तू यहाँ क्या कर रहा हैं ?’’ उसने तोतली जबान में कहा ,’’ मुझे सु सु करनी हैं |’’
‘’ अरे बेटा ,यहाँ बाथरूम नहीं हैं | बाथरूम उधर हैं |’’
‘’ये बाथलूम नहीं हैं | मुझे लगा यही बाथलूम हैं |’’ वह मुस्कुराने लगा था | और वह सीड़ियों के निचे बने बाथरूम की ओर चला गया | दोस्त ने बताया ,’’उसके माँ-बाप नहीं हैं | वे एक अक्सिडेंट में चल बसे ..| और उसे यहाँ किसीने लाकर छोड़ा हैं | तब से वह यहीं रहता हैं | उसे माँ-बाप क्या होते हैं ,पता नहीं | यही स्कूल उसका घर हैं और माता-पिता भी |’’ कुछ समय के लिए मैं भावनिक हो गया था | उसकी मासूमियत को देख दुःख हुआ | इस उम्र में उसके माँ-बाप चल बसे | जिस उम्र में माँ-बाप के प्यार की आवश्यकता होती हैं | वह नेत्रहीन था |

समय बहुत हो रहा था | मैंने दोस्त से कहा ,’’ यार बहुत समय हो गया हैं | अब मुझे घर चलाना चाहिए | घर पर मेरी प्रतीक्षा कर रहे होंगे | “ वह बेहद आग्रह कर रहा था कि मैं उसके पास रुकू पर घर से निकले हुए पंछी को आखिर श्याम घर लौटना ही पड़ता हैं | ‘’ मैंने उसे कहा एक बार वायलिन पर मधुर संगीत हो जाये ..तो मैं चलू ..|’’ उसने वायलिन उठाई ,एक हाथ में बो पकड़ा और दूसरे हाथ से वायलिन के तारों पर संगीत सृजन के लिए तैयार हो गया | हम फिर से खो गये ... मैं सोचने लगा दोस्त ,राकेश ,वह नेत्रहीन सुन्दर लड़की ,वह मासूम लड़का ....
डॉ.सुनील जाधव,नांदेड 
''एक कहानी ऐसी भी'' कहानी संकलन से 
चन्द्रलोक प्रकाशन, कानपूर 

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